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भगववी-सूती
२६१ श०३ उ०४ प्र०६४ ग- तप्ततवेपर उदक बिन्दु के नष्ट होने का उदाहरण घ. रिक्त नौका का उदाहरण ङ. संवृत अणगार की इर्यावही क्रिया तथा अकर्म दशा
प्रमत्त और अप्रमत्त संयम एक या अनेक जीवों की अपेक्षा से प्रमत्त संयत की स्थिति एक या अनेक जीवों की अपेक्षा से अप्रमत्त संयत की स्थिति लवण समुद्र में ज्वार-भाटा लवण समुद्र में ज्वार-भाटा आने का कारण
चतुर्थ यान उद्देशक ८४ अणगार देवरूप यान को देखता भी है और नहीं भी देखता है
देवरूप यान की चोभंगी ८५ क- अणगार देवीरूप यान को देख भी सकता है और नहीं भी
देख सकता है ख- देवीरूपी यान की चोभंगी ८६ क- अणगार देव-देवीरूप यान को देख सकता है और नहीं भी
देख सकता है
ख- देव-देवी रूप यान की चोभंगी ८७-८८ क अणगार वृक्ष के अन्दर-बाहर दोनों भागों को देख सकता है
ख- मूल और कंद की चोभंगी ग- मूल और स्कंध की चौभंगी घ. मूल और बीज की चौभंगी-यावत् ङ- फल और बीज की चौभंगी-४५ भागे
वायुकाय ८६ वायुकाय की पताकारूप में विकुर्वणा
विकुर्वितरूप वायुकाय की गति का परिमाण ६१-६४ वायुकाय की गति के सम्बन्ध में विविध विकल्प
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