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________________ सूत्र ५६ ६१५ कल्पसूत्र-सूची छ- ,, स्नेह सूक्ष्म ४६ क- आचार्यादि से पूछकर भिक्षा के लिये जाने का विधान ख- पूछकर जाने का कारण क- स्वाध्याय के लिये आचार्यादि से पूछ कर जाने का विधान ख- शौच के लिये आचार्यादि से पूछ कर जाने का विधान ग- आचार्यादि से पूछ कर ही विहार करने का विधान ४८ क- आवश्यकता हो तो आचार्यादि से पूछ कर ही विकृति सेवन का विधान ख- पूछने का हेतु ४६ क- आचार्यादि से पूछ कर ही चिकित्सा कराने का विधान ख- पूछने का हेतु ५० आचार्यादि से पूछ कर ही तपश्चर्या करने का विधान ५१ क- आचार्यादि से पूछ कर ही संलेखना-भक्त प्रत्याख्यान करने का विधान ख- पूछने का कारण ५२ क- वस्त्रादिको धूप में सुखाकर भिक्षा के लिये जाने का निषेध ख. , , , , स्वाध्याय के लिये ग- , , , ,, कायोत्सर्ग करने का निषेध ५३-५४ बिना आसन शयन के सोने बैठने का निषेध ५५ क- मल-मूत्रादि से निवृत्त होने के लिये तीन स्थान ख. तीन स्थान देखने का हेतु ५६ तीन पात्र लेने का विधान ५७ लोच का विधान लोच के विकल्प ५८-५९ क- क्षमा याचना ख- उपशम भाव से आराधना For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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