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________________ भगवती-सूची २७३ श०१ उ०५ प्र० १६२ १७६ नैरयिक असंघयणी है १७७ असंघयणी नरयिकों में कषाय के २७ भांगे १७८ नैरयिकों का संस्थान १७६ हुंड संस्थानवाले नैरयिकों में कषाय के २७ भांगे १८० रत्नप्रभा में एक लेश्या १८१ कापोत लेश्यावाले नै रयिकों में कषाय के २७ भांगे १८२ रत्नप्रभा के नैरयिकों में तीन दृषि १८३ सम्यग्दृष्टि और मिथ्याणि नैरयिकों में कषाय के २७ भांगे सममिथ्यादृष्टि नैरयिकों में कषाय के ८० भांगे १८४ नै रयिक ज्ञानी भी हैं, अज्ञानी भी हैं १८५ ज्ञानी और अज्ञानी नै रयिकों में कषाय के २७ भांगे १५६ नैरयिकों में तीन योग १८७ तीन योग वाले नै रयिकों में कषाय के २७ भांगे १८८ नैरयिकों में साकारोपयोग और अनाकारोपयोग १८६ क- दोनों उपयोगवाले नैरयिकों में कषाय के २७ भांगे ख- शेष ६ नारकों में रत्न-प्रभा के समान ग- लेश्या में भिन्नता १६० क- असुर कुमारों की स्थिति ख- असुर कुमारों में कषाय के प्रतिलोम भाँगे ग- शेष भवनवासी देव असुर कुमारों के समान १६१ क- पृथ्वीकायिकों की स्थिति ख- पृथ्वीकायिकों की स्थिति १६२ क- पृथ्वीकायिकों में कषाय के भांगे नहीं तेजोलेश्यावाले पृथ्वीकायिकों में कषाय के ८० भांगे ख- अप्कायिकों में कषाय के भांगे नहीं ग. तेउकायिकों में , , , घ. वाउकायिको में ,, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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