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________________ सूत्र २० औपपातिक-सूची • त- कषाय प्रतिसंलीनता के चार भेद थ- योग प्रतिसंलीनता के तीन भेद द- मनोयोग प्रतिसंलीनता के दो भेद ध- वचनयोग , " " न- काययोग ,, ,, प- विविक्त शय्या-आसन-सेवन की व्याख्या आभ्यन्तरतप के छ भेद २० क- प्रायश्चित्त के दस भेद ख- विनय के सात भेद ग- ज्ञानविनय के पांच भेद घ- दर्शनविनय के दो भेद ङ. शुश्रुषाविनय के भेद च. अनत्याशातना विनय के पैंतालीस भेद छ- चारित्रविनय के पांच भेद ज- मनविनय के दो भेद भा- वचन विनय के दो भेद अ- कायविनय के दो भेद ट- अप्रशस्त कायविनय के सान भेद ठ- प्रशस्त कायविनय के सात भेद ड- लोकोपचार विनय के सात भेद ढ- वैयावृत्य के दस भेद ण- स्वाध्याय के पांच भेद त- ध्यान के चार भेद | थ- आर्तध्यान के चार भेद द- , ,, लक्षण ध- रौद्रध्यान के चार भेद Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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