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________________ श्रु०१ अ०२ ५१४ विपाक-सूची घ- इकाई के शरीर में सोलह रोगों की उत्पत्ति, चिकित्सा के लिये किये गये प्रयत्नों की असफलता, मृत्यु, नरक में उत्पत्ति ङ- नरकायु भोग के पश्चात् मृगा देवी की कुक्षी में उत्पन्न होना च- मृगा देवी का अपमानिता होना और गर्भ गिराने का प्रयत्न करना ६ क- गर्भ में भस्मक रोग का होना ख- जन्म के पश्चात् शिशु को उकरड़ी पर डालने के लिए दासी को कहना ग- दासी का मृगादेवी के आदेश के सम्बन्ध में विजय राजा से __ निवेदन ... घ- मृगापुत्र को भूमिघर में रखने की व्यवस्था । ७ क- 'मृगापुत्र का पुायु भोग के पश्चात् सिंह होना ख- मृगापुत्र का भवभ्रमण ग- सुप्रतिष्ठ नगर में एक मजदूर के घर जन्म लेना तथा गंगा तट की मिट्टी के नीचे दब कर मरना घ- पुनः सुप्रतिष्ठ नगर में एक सेठ के घर जन्म लेना ङ- युवावस्था में स्थविरों से धर्मश्रवण, वैराग्य-प्रव्रज्या, श्रमण पर्याय, समाधि-मरण, सौधर्म कल्प में उत्पत्ति च- च्यवन महाविदेह से मुक्ति द्वितीय उज्झितक अध्ययन [गोमांस भक्षण, मद्यपान और वैश्यागमन का फल ८ क- उत्थानिका, वाणिज्य ग्राम, दूतिपलास उद्यान, सुधर्म यक्ष का यक्षायतन, विजय मित्र राजा, श्रीदेवी । ख- कामध्वजा गणिका [७२ कला, ६४ गणिका कला, २६ विशेषता २१ रतिकला, ३२ वशीकरण ६ अंग, १८देशी भाषा विशारद] ६ क- विजयमित्र सार्थवाह सुभद्रा भार्या, उज्झितक पुत्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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