SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 351
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श०८ उ०४-५-६ प्र०२११ १६७ क- राजगृह १६८ २६६ २०० २०१ २०२ २०३ २०४ २०७ २०८ २०६ चतुर्थ क्रिया उद्देशक २१० क- राजगृह. स्थविर ख- श्रावक सामायिक के पश्चात् अपने ही उपकरणों की शोध करता है श्रावक के ममत्व भाव का प्रत्याख्यान नहीं है सामायिक व्रत स्वीकार करने पर भी स्त्री उसी की स्त्री है श्रावक का प्रेम बंधन अविच्छिन्न है प्राणातिपात के प्रत्याख्यान का स्वरूप अतीत-कालीन प्रतिक्रमण के भांगे वर्तमान-कालीन संवर के भांगे २०५ भविष्य कालीन प्रत्याख्यान के भांगे २०६ क- स्थूल मृषावाद प्रत्याख्यान के भांगे ख- स्थूल अदत्तादान प्रत्याख्यान के भांगे ग- स्थूल मैथुन प्रत्याख्यान के भांगे स्थूल परिग्रह प्रत्याख्यान के भांगे आजीविक का सिद्धान्त २११ ख- पांच प्रकार की क्रिया ३२३ पंचम आजीविक उद्देशक आजीविक बारह श्रमणोपासक श्रावकों के त्याज्य पंद्रह कर्मादान देवलोक Jain Education International भगवती-सूची चार प्रकार के देवलोक षष्ठ प्रासुक आहारादि उद्देशक उत्तम श्रमण को शुद्ध आहार देने से एकान्त निर्जरा For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy