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________________ श्रु१ अ०३ विपाक-सूची १४ क- उज्झितक की पुर्णायु. मृत्यु के पश्चात् भवभ्रमण. गणिका कुल में उत्पत्ति, नपुंसक बनाना, पुर्णायु भोग के पश्चात् नरक गति, अनेक भव ख- चंपा में सेठ के घर जन्म, युवावय में स्थविरो से धर्मश्रवण वैराग्य. दीक्षा. श्रमण-जीवन. समाधिमरण. सौधर्म कल्प में उत्पत्ति. च्यवन. महाविदेह से मुक्ति. तृतीय अभग्न अध्ययन [अण्डों के व्यापार. का तथा मद्यपान फल ] १५ क- उत्थानिका. पुरिमताल नगर. अमोध दर्शन उद्यान. अमोघ दर्शन यक्ष का यक्षायतन महाबल राजा ख- साला अटवी. पांच सो चोर का अधिपति "विजय" स्कंद श्री भार्या १६ क- विजय चोर के अकृत्य ख- भ० महावीर का समवसरण. गौतम गणधर का भिक्षा चर्या के लिये जाना. राजमार्ग. अठारह चौराहों पर अभग्नसेन का वध देखना १७ क- अभग्नसेन पूर्वभव की जिज्ञासा. जंबूद्वीप. भरत. पुरिमताल नगर. उदितोदित राजा. अण्डों का व्यापारी निन्नक ख- अनेक प्रकार के अण्डों का व्यापार ग- अण्डे और मद्य का उपभोक्ता निन्नक की मृत्यु. नरक में उत्पत्ति १८ क- निन्नक की आत्मा का स्कंद श्री की कुक्षि में आगमन ख- स्कंदश्री का दोहद. पुत्र जन्म. अभग्नसेन नाम रखना. बाल्यकाल १६ क- आठ कन्याओं से पाणि ग्रहण. भोगमय जीवन ख- विजय की मृत्यु. अभग्नसेन का अभिषेक ग- अभग्नसेन के उपद्रवों से त्रस्त जनता की महबलराजा से पुकार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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