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________________ श०१५ उ०१ प्र०६ भगवती-सूची ४ क- भ० महावीर का गोशालक को शिष्यरूप में स्वीकार करना ख- भ० महावीर और गोशालक का प्रणीत भूमि में छह वर्ष तक विचरण ५ क- भ० महावीर और गौशालक का सिद्धार्थ ग्रामसे कूर्मग्राम की __ओर विहार ख- मार्ग में तिल के पौधे को लक्ष्य करके गोशालक का भ० महावीर से प्रश्न ग- भ० महावीर के कथन को अस्वीकार करके गोशालक ने तिल के पौधे को उखाड़ फेंकना घ- दिव्य उदक वृष्टि से तिल के पौधे का पुनः प्रत्यारोपण ६ क- कूर्मग्राम के बाहर गोशालक का वैश्यायन बाल तपस्वी से विवाद ख- वैश्यायन बाल तपस्वी द्वारा गौशालक पर तेजोलेश्या का प्रक्षेपण ग- भ० महावीर द्वारा शीतलेश्या से गौशालक का रक्षण घ- भ० महावीर का गोशालक को तेजोलेश्या की साधना का कथन ७ क- भ० महावीर का गोशालक के साथ सिद्धार्थ ग्राम की ओर विहार ख- भ० महावीर से अलग होकर गोशालक द्वारा तिल के पौधे का निरीक्षण, परीक्षा और परिवर्तवाद के सिद्धान्त का निरूपण ग- गोशालक का भगवान से पुनर्मिलन और भगवान् से अपने पूर्ववृत्त का परिश्रवण ८ गोशालक को तेजोलेश्या की प्राप्ति है क- छह दिशाचरों द्वारा गोशालक का शिष्यत्व स्वीकार ख- शिष्य परिवार के साथ गोशालक का स्वतंत्र विचरण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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