SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 434
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवती-सूची ४०६ श०२५ उ०७ प्र०६ अठाईसवां अाकर्ष द्वार १२८-१३५ पांच निग्रंथों के आकर्ष उनत्तीसवां काल द्वार १३६-१४१ पांच निग्रंथों की स्थिति तीसवां अन्तर द्वार १४२-१४६ पाँच निग्रंथों का अन्तर द्वार इकतीसवां समुद्घात द्वार १४७-१५१ पांच निग्रंथों में समुद्घात बत्तीसवां क्षेत्र द्वार १५२-१५३ पाँच निग्रंथों के क्षेत्र तेतीसवां स्पर्शना द्वार पांच निग्रंथों की स्पर्शना चौतीसवां भाव द्वार १५५-१५७ पांच निग्रंथों का भाव पैंतीसवां परिमाण द्वार १५८-१६२ पांच निग्रंथों का परिमाण छत्तीसवां अल्प-बहुत्व द्वार १६३ पांच निग्रंथों की अल्प-बहुत्व सप्तम संयत उद्देशक पांच प्रकार के चारित्र दो प्रकार का सामायिक चारित्र दो प्रकार का छेदोपस्थापनीय चारित्र दो प्रकार का परिहारविशुद्ध चारित्र दो प्रकार का सूक्ष्म संपराय चारित्र ६ क- दो प्रकार का यथाख्यात चारित्र ख-१ गाथायें, पांच चारित्रों का अर्थ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy