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________________ श०२५ उ०६ प्र० १२७ ४०५ भगवती-सूची ७५-८१ पंच निग्रंथों के चारित्र पर्याय ८२ पंच निग्रंथों के चारित्र-पर्यवों का अल्प-बहत्व सोलहवां योग द्वार ८३-८४ पंच निग्रंथों के योग सतरहवां उपयोग द्वार पांच निग्रंथों में उपयोग अठारहवां कषाय द्वार ८६-८८ पांच निग्रंथों में कषाय उन्नीसवां लेश्या द्वार ८६-६२ पांच निग्रंथों में लेश्या बीसवां परिणाम द्वार ९३-१०१ पांच निग्रंथों के परिणाम इक्कीसवां बन्ध द्वार १०२-१०५ पांच निग्रंथों के कर्म प्रकृतियों का बन्ध बाईसवां वेद द्वार १०७-१०६ पांच निग्रंथों द्वारा कर्म प्रकृतियों का वेदन तेईसवां उदीरणा द्वार ११०-११४ पांच निग्रंथों द्वारा कर्म प्रकृतियों की उदीरणा चौवीसवां उपसंपद-हानि द्वार ११५-१२० पांच निग्रंथों द्वारा निग्रंथ जीवन का स्वीकार और त्याग पच्चीसवां संज्ञा द्वार १२१-१२२ पांच निग्रंथों में संज्ञा छब्बीसवां श्राहार द्वार १२३-१२४ पांच निग्रंथों में आहार सत्ताईसकां भव द्वार १२५-१२७ पांच निग्रंथों के भव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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