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________________ राज प्र० सूची सूत्र ५५-६२ ५५ जितशत्रु का भेजा हुआ उपहार प्रदेशी राजा को भेंट करना ५६ क- केशी कुमार श्रमण का मृगवन उद्यान में पधारना ख- उद्यान पालक का चित्त को सूचना देना ग. चित्त का धर्मकथा श्रवण करना ५७ क. राजा प्रदेशी को धर्मोपदेश देने के लिए चित्त की प्रार्थना ५८ क- केशी कुमार श्रमण द्वारा केवली प्रज्ञप्त धर्म श्रवण न कर सकने के चार कारण तथा केवली प्रज्ञप्त धर्म श्रवण कर सकने के चार कारणों का कथन ख- चित्त की ओर से प्रदेशी राजा को लाने का आश्वासन ५६ क- राजा प्रदेशी को कम्बोज देश के अश्वों की गति दिखाने वे बहाने वन में ले जाना. ख- विश्रान्ति के लिये मृगवन उद्यान में ले जाना ग- केशी कुमार श्रमण के सम्बन्ध में प्रदेशी की जिज्ञासा ६० क- चित्त को साथ लेकर प्रदेशी का केशी कुमार श्रमण के समीप पहुंचना-और प्रश्न करना. ख- कर की चोरी करने वाले वणिक के समान अविनय से प्रश्न न पूछने के लिये केशी कुमार श्रमण का कथन तथा राजा के मनोगत भावों का कथन. ६१ क- मनोगत भावों को जानने वाले ज्ञान के सम्बन्ध में राजा प्रदेशी की जिज्ञासा ख- केशी कुमार श्रमण द्वारा पांच ज्ञानों का संक्षिप्त परिचय और स्वयं के चार ज्ञान होने का कथन. ६२ क- देह और आत्मा के भिन्न होने का हेतु जानने के लिये प्रदेशी का प्रश्न ख- अधर्मी पितामह का नरक से और धर्मात्मा पितामही का स्वर्ग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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