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सूत्र ४६-५४
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४६ क- भ० महावीर द्वारा सूर्याभ के पूर्वभव का वर्णन मृगवन उद्यान, प्रदेशी राजा
[ राजा का जीवन परिचय ]
सूर्यकान्ता देवी
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युवराज सूर्यकान्त कुमार
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प्रदेशी राजा के बड़े भाई चित्त सारथी का राजनीतिक जीवन ५० क- कुणाल जनपद श्रावस्ती नगरी. कौष्टक चैत्य. जितशत्रु राजा. ख- प्रदेशी राजा का चित्त सारथी के साथ जित शत्रु राजा को महर्घ्य उपहार भेजना.
ग- महर्घ्य उपहार लेकर श्वेताम्बिका पहुँचना और जितशत्रु राजा को भेंट करना.
-५१ क- कौष्ठक चैत्य में पाश्र्वापत्य केशी कुमारश्रमण का पधारना. ख- धर्मपरिषद् में चित्त का जाना और चातुर्याम धर्म एवं द्वादशविध गृहीधर्म का श्रवण करना.
ग- पंचारणुव्रत, सप्त शिक्षाव्रत रूप द्वादशविध गृहीधर्म धारण
करना.
-५२
चित्तसारथी का श्रमणोपासक बनना
५३ क - जितशत्रु राजा का चित्त के साथ प्रदेशी राजा को भेंट देने के लिये बहुमूल्य उपहार भेजना.
ख- केशीकुमार श्रमण को श्रावस्ती पधारने का आग्रह करना.
ग- श्वेताम्बिका को सोपसर्ग वनखण्ड की उपमा देकर अनिच्छा
राज प्र० सूची
प्रगट करना.
घ- श्वेताम्बिका में अनेक श्रमणोपासकों के होने से किसी प्रकार का कष्ट न होने का आश्वासन दिलाना.
ङ. चित्त की विनती स्वीकार करना
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चित्त का मृगवन के उद्यानपालक को केशी कुमार श्रमण की भक्ति करने का तथा प्राने पर सूचना देने का कहना
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