________________
सूत्रकृतांग-सूची
श्रु०२, अ०२ उ०१ सू०३२
m
१६.
२
द्वितीय क्रिया-स्थान प्रयध्यन प्रथम उद्देशक दो प्रकार के स्थान १ धर्म स्थान
२ अधर्म स्थान १ उपशांत स्थान
२ अनुपशांत स्थान तेरह क्रियास्थान अधर्म स्थान प्रथम अर्थ-दण्ड की व्याख्या द्वितीय अनर्थ-दण्ड , तृतीय हिंसा-दण्ड , चतुर्थ अकस्मात् दण्ड की व्याख्या पंचम दृष्टि विपर्यास दण्ड , षष्ठ मृषावाद प्रत्ययिक क्रियास्थान की व्याख्या सप्तम अदत्तादान प्रत्ययिक की व्याख्या अष्टम अध्यात्म नवम मान दशम मित्र दोष
एकादश माया २८ द्वादश लोभ २६ त्रयोदश धर्मस्थान, इर्या पथिक क्रियास्थान की व्याख्या
पापशास्त्रों के नाम पापशास्त्रों के अध्ययनकर्ताओं की गति
पापात्माओं के चतुर्दश पाप कार्य ३२ क महापापियों के कार्य, भोगमय जीवन बितानेवाले अनार्य हैं,
धूर्त हैं
२२ २३
म
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org