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________________ श्रु०२, अ०१, उ० १ सू० १५ १२ १३ १४ १५ क ख ग ८७ ईश्वर कर्तव्य का प्रतिपादन, क्रिया अक्रिया, आदि का निषेध सूत्रकृतांग- सूची ईश्वर कारणिकवादी श्रमण का भोगमय जीवन राजा, राजसभा, धर्मोपदेशक, नियतिवादी द्वारा नियतिवाद का प्रतिपादन क्रिया-अक्रिया, सुकृत- दुष्कृत आदि का निषेध भिक्षावृत्ति स्वीकार करना तथा एकत्व भावना भावित श्रमण का तत्त्वज्ञान गृहस्थ और अन्य तीर्थिकका सावद्य जीवन. श्रमण का निरवद्य जीवन. छ जीवनिकाय की हिंसा का युक्तिपूर्वक निषेध, समस्त तीर्थकरों द्वारा अहिंसा का प्रतिपादन सूत्र संख्या १५ सुकृतदुष्कृत प्राणातिपात से विरत और अनाचार सेवन न करनेवाला भिक्षु संयम साधना से भिक्षु का स्वर्ग या सिद्धलोक में गमन अनासक्त पाप-विरत भिक्षु प्राणातिपात से सर्वथा विरत भिक्षु काम भोग से सर्वथा विरत भिक्षु Jain Education International घ ङ च क्रोधादिपूर्वक की गई सांपरायिक क्रिया से सर्वथा विरत भिक्षु छ क्रीत आदि दोष रहित आहार लेने वाला भिक्षु ज गृहस्थ के निमित्त बने हुए आहार को अनासक्त होकर खाने वाला और समस्त कार्य यथा समय करनेवाला भिक्षु झ निस्पृह होकर धर्मोपदेश करनेवाला भिक्षु 외 उक्त सर्वगुण संपन्न भिभु के उपदेश से भव्य आत्माओं का उद्धार श्रमण के गुण श्रमण के चौदह पर्याय वाची For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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