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श्रु०२, अ०१, उ० १ सू० १५
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ईश्वर कर्तव्य का प्रतिपादन, क्रिया अक्रिया,
आदि का निषेध
सूत्रकृतांग- सूची
ईश्वर कारणिकवादी श्रमण का भोगमय जीवन राजा, राजसभा, धर्मोपदेशक, नियतिवादी द्वारा नियतिवाद का प्रतिपादन क्रिया-अक्रिया, सुकृत- दुष्कृत आदि का निषेध भिक्षावृत्ति स्वीकार करना तथा एकत्व भावना भावित श्रमण
का तत्त्वज्ञान
गृहस्थ और अन्य तीर्थिकका सावद्य जीवन.
श्रमण का निरवद्य जीवन.
छ जीवनिकाय की हिंसा का युक्तिपूर्वक निषेध, समस्त तीर्थकरों द्वारा अहिंसा का प्रतिपादन
सूत्र संख्या १५
सुकृतदुष्कृत
प्राणातिपात से विरत और अनाचार सेवन न करनेवाला भिक्षु संयम साधना से भिक्षु का स्वर्ग या सिद्धलोक में गमन अनासक्त पाप-विरत भिक्षु
प्राणातिपात से सर्वथा विरत भिक्षु
काम भोग से सर्वथा विरत भिक्षु
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च क्रोधादिपूर्वक की गई सांपरायिक क्रिया से सर्वथा विरत भिक्षु
छ क्रीत आदि दोष रहित आहार लेने वाला भिक्षु
ज गृहस्थ के निमित्त बने हुए आहार को अनासक्त होकर खाने
वाला और समस्त कार्य यथा समय करनेवाला भिक्षु
झ निस्पृह होकर धर्मोपदेश करनेवाला भिक्षु
외 उक्त सर्वगुण संपन्न भिभु के उपदेश से भव्य आत्माओं का
उद्धार
श्रमण के गुण
श्रमण के चौदह पर्याय वाची
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