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________________ समवाय ४ २०७ समवायांग-सूची ६ अश्विनी नक्षत्र के तारे ७ भरिणी नक्षत्र के तारे १ रत्नप्रभा के कुछ नैरयिकों की स्थिति २ शर्कराप्रभा के कुछ नैरयिकों की स्थिति ३ बालुका प्रभा के कुछ नैरयिकों की स्थिति ४ कुछ असुरकुमारों की स्थिति ५ असंख्य वर्ष की आयुवाले संज्ञी तिर्यच पंचेन्द्रियों की स्थिति ६ असंख्य वर्ष की आयुवाले संज्ञी मनुष्यों की उत्कृष्ट स्थिति ७ सौधर्म-ईशान कल्प के कुछ देवों की स्थिति ८ सनत्कुमार-माहेन्द्र कल्प के कुछ देवों की स्थिति ९ आभंकर आदि विमानवासी देवों की स्थिति १ आभंकर आदि विमानवासी देवों का श्वासोच्छ्वास काल १ आभंकर आदि विमानवासी देवों का आहारेच्छा काल १ कुछ भवसिद्धिकों की तीन भव से मुक्ति सूत्र संख्या २४ " चतुर्थ समवाय १ कषाय २ ध्यान ३ विकथा ४ संज्ञा ५ बंध ६ योजन का परिमाण १ अनुराधा नक्षत्र के तारे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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