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________________ सूत्र ६६-१०३ ५८५ जीवाभिगम-सूची ग- वल्लरियां चार प्रकार की घ- लतायें आठ प्रकार की ङ- हरितकाय तीन प्रकार की च. त्रस-स्थावर जीवों की कुल कोटियां ६६ क- स्वस्तिकादि विमानों की महानता ख- अर्ची आदि विमानों की , ग- विजयादि विमानों की , द्वितीय तिर्यंच योनिक जीव उद्देशक १०० क- संसार स्थित जीव ६ प्रकार के ख- पृथ्वीकायिक-यावत्-वनस्पतिकायिक जीव दो दो प्रकार के ग- त्रसकायिक जीव चार प्रकार के १०१ क- पृथ्वीयाँ ६ प्रकार की ख- श्लक्ष्ण पृथ्वीयों की जघन्योत्कृष्ट स्थिति ग- शुद्ध घ- बालुका ङ- मनः शिला , छ- शर्करा , च- खरा ज- नैरयिक-यावत्-सर्वार्थ सिद्ध देवों की स्थिति झ- जीव का संस्थितिकाल अ- पृथ्वीकाय-यावत्-त्रसकाय का संस्थिति काल १०२ क- प्रत्युत्पन्न पृथ्वीकायिक-यावत्-प्रत्युत्पन्न त्रसकायिक जीवों का जघन्योत्कृष्ट निर्लेप काल ख- जघन्य उत्कृष्ट निर्लेप का अन्तर १०३ क- कृष्णलेश्या आदि तीन लेश्यावाले अनगार का देव-देवियों को देख सकना (छ विकल्प) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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