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________________ वक्ष० ४ सूत्र १११ ७१२ जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति-सूची ग- मध्यम काण्ड चार प्रकार का घ- उपरिम काण्ड एक प्रकार का ड- तीनों काण्डों का बाहल्य च- मेरु का परिमाण १०६ क- मेरु पर्वत के सोलह नाम ख- मेरु नाम का हेतु ग- मेरुदेव और उसकी स्थिति क- नीलवंत वर्षधर पर्वत का स्थान ख- नीलवंत व. प. के आयत और विस्तार की दिशा ग- शेष वर्णन निषध पर्वत के समान घ- नारिकान्ता नदी का वर्णन ङ- नीलवंत व. प. के नो कूट और केशरी ग्रह का वर्णन च- नीलवन्त नाम होने का हेतु छ- नीलवन्त शाश्वत नाम है क- रम्यकवर्ष का स्थान ख- शेष वर्णन हरिवर्ष के समान ग- गन्धावति वृत वैताढ्य पर्वत का स्थान घ. शेष वर्णन विकटापाति के समान ङ- रूक्मी वर्षधर पर्वत का स्थान, महापुण्डरीक द्रह. नरकान्ता नदी, रूप्यकुला नदी च- रूक्मी वर्षधर पर्वत पर पाठ कूट छ- रूक्मी व. प. नाम होने का हेतु शेष वर्णन महाहिमवन्त पर्वत के समान ज- हैरण्यवत वर्ष का स्थान हेमवत वर्ष के समान वर्णन झ- माल्यवन्त वृत्त वैताढ्य पर्वत का स्थान अ- शब्दापाती वृत्त वैताढ्य पर्वत के समान वर्णन । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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