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उ० २ सूत्र २६
व्यवहारसूत्र-सूची ५ रुग्ण परिहार कल्पस्थित का दोष सेवन. ६-१७ गण से निकालने का निषेध
क- ग्लान परिहार कल्पस्थित को ख- परिहार-कल्पस्थित को ग- पारांचिक प्रायश्चित्त स्थित को घ- विक्षिप्त भिक्षु को ङ- दर्पोन्मत्त भिक्षु को च- यक्षाविष्ट भिक्षु को छ- उन्मत्त " को ज- उपसर्ग पीड़ित भिक्षु को झ- क्रोधान्ध " ज- प्रायश्चित्त सेवी " ट- भक्त पान प्रत्याख्यात भिक्षु को ठ- सिद्ध प्रयोजन भिक्षु को
गणावच्छेदक पद १८-२३ दोष सेवी को प्रमुख पद
क- भिक्षु-वेषी अनवस्थाप्य को न देना ख- गृह-वेषी को देना ग- भिक्षु-वेषी पारचिक प्रायश्चित्त सेवी को न देना घ- गृह-वेषी को देना ङ-च- गण की सम्मति से दोनों को देना
कलंक का निर्णय करना २५ मोहमत्त का गण त्याग और पुनः गण प्रवेश से पूर्व स्थविरों
द्वारा दोष का निर्णय आचार्य उपाध्याय पद गण की सम्मति से एक पक्षीय भिक्षु को आचार्य-उपाध्याय पद देना
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