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________________ भगवती-सूची ३२८ ख- वर्णादि पुद्गल परिणाम के भेद ४२६-४३० क- पुद्गलास्तिकाय का एक प्रदेश- यावत् ख- पुद्गलास्तिकाय के अनन्त प्रदेश लोकाकाश के प्रदेश एक जीव के प्रदेश कर्म प्रकृतियां ४३३ आठ कर्म प्रकृतियां ४३४ चौवीस दण्डक में आठ कर्म प्रकृतियां ४३५-४३६ आठ कर्मों के अविभाज्य अंश ४३१ ४३२ चौवीस दण्डक में आठ कर्मों के अविभाज्य अंश ४३७ जीव के एक-एक प्रदेशपर आठ कर्मों का आवरण ४३८-४३६ चौवीस दण्डक में प्रत्येक जीव के एक-एक प्रदेशपर आठ कर्मों का आवरण ४४०-४५३ आठ कर्मों का परस्पर सम्बन्ध जीव- विचार जीव पुद्गती है या पुद्गल - इसका निर्णय चौवीस दण्डक के जीव पुद्गली है या पुद्गल - इसका निर्णय सिद्ध पुद्गली है या पुद्गल - इसका निर्णय ४५४ ४५५ ४५६ नवम शतक प्रथम जम्बू उद्देशक श० उ० १ प्र० १ १ क- जम्बूद्वीप, मिथिला नगरी, माणिभद्र चैत्य, भ. महावीर और गौतम ख- जम्बूद्वीप का स्थान ग- जम्बूद्वीप का संस्थान यावत् घ जम्बूद्वीप के पूर्व-पश्चिम में चौदह लाख छप्पन हजार नदियाँ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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