________________
भगवती-सूची
२-४ क- राजगृह
५
३२६
द्वितीय ज्योतिषीदेव उद्देशक
२७-१७
२०
२१
२२
२३
२४
२५
ख- अढाईद्वीप में प्रकाश करने वाले चन्द्र-सूर्य
६ क - राजगृह
ख- केवली आदि से धर्म श्रवण किये बिना धर्म की प्राप्ति इसी प्रकार बोधि प्राप्ति, बोधि प्राप्ति का हेतु, प्रव्रज्या प्राप्ति, प्रव्रज्या प्राप्ति का हेतु,
ब्रह्मचर्य धारण करना, ब्रह्मचर्य धारण करने का हेतु संयमप्राप्ति, संयम प्राप्ति का हेतु,
श० ६ उ० २-३१ प्र० २५
तृतीय से तीसवाँ पर्यन्त अन्तरद्वीप उद्देशक अट्ठाईस अन्तद्वीप
इकतीसवाँ सोच्चा उद्देशक
संवर प्राप्ति, संवर प्राप्ति का हेतु,
आभिनिबोधक ज्ञान, आभिनिबोधक ज्ञान का हेतु, श्रुत ज्ञान, श्रुत ज्ञान का हेतु, अवधि ज्ञान, अवधिज्ञान का हेतु,
मनः पर्यव ज्ञान, मनः पर्यव ज्ञान का हेतु,
केवल ज्ञान, केवल ज्ञान का हेतु,
१८
बोधि आदि की प्राप्ति और उसके हेतु
१६ क - विभंग ज्ञान की उत्पत्ति, सम्यक्त्व की प्राप्ति
ख- चारित्र स्वीकार, अवधिज्ञान की प्राप्ति
अवधिज्ञानियों में लेश्या
अवधिज्ञानियों में ज्ञान
अवधिज्ञानियों में साकारोपयोग
अवधिज्ञानियों में योग
अवधिज्ञानियों में उपयोग
अवधिज्ञानियों का संघयण
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org