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श०६ उ०-१० प्र० १५२ ३११
भगवती-सूची १३४-१३५ चौवीस दण्डक में बारह आलापक १३६ लवण समुद्र का वर्णन १३७ द्वीप-समुद्रों के नाम
नवम कर्म उद्देशक १३८ ज्ञानावरणीय के बंध के समय बंधनेवाली प्रकृतियाँ
महर्धिक देव और विकुर्वणा १३६-१४० बाह्य पुद्गलों को ग्रहण करके महधिक देव का वैक्रिय करना १४१ देवलोकवर्ती पुद्गलों को ग्रहण करके महधिक देव का वैक्रिय
करना १४२-१४३ वर्ण विपर्यय करने में महधिक देव का सामर्थ्य
देवता का जानना और देखना १४४ अशुद्ध लेश्यावाले देवों का जानना और देखना (आठ विकल्प) १४५-१४८ विशुद्ध लेश्यावाले देवों का जानना और देखना
दशम अन्य यूथिक उद्देशक अन्य यूथिक राजगृह में जितने जीव हैं उतने जीवों को भी सुख-दुःख होने में समर्थ नहीं हैं महावीर
लोक के सभी जीवों को कोई सुख-दुःख देने में समर्थ नहीं है १४६ क जीव की व्याख्या
ख चौवीस दंडक में जीव चैतन्य है १५० क जीव की व्याख्या
ख चौबीस दंडक के जीव प्राणधारी हैं १५१ चौवीस दण्डक के जीव भवसिद्धिक भी हैं, अभवसिद्धिक भी हैं
अन्य यूथिक १५२ सभी प्राणी एकान्त दुःख का वेदन करते हैं
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