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________________ अनुयोगद्वार-सूची ८४२ सूत्र १४५. ख- आवलिका-यावत्-शीर्षप्रहेलिका पर्यन्त गणना काल ग- औपमिक काल के दो भेद घ- पल्योपम के तीन भेद ङ- प्रत्येक भेद की व्याख्या च- सागरोपम का की व्याख्या १३८ पल्योपम-सागरोपम काल का प्रयोजन १३६ चौबीस दण्डक के जीवों की स्थिति १४० क- क्षेत्र पल्योपम के दो भेद ख- व्यवहारिक क्षेत्र पल्योपम एवं सागरोपम की व्याख्या और उसका प्रयोजन १४१ क- द्रव्य के दो भेद ख- अजीव द्रव्य के दो भेद ग- अरूपी अजीव द्रव्य के दस भेद घ- रूपी अजीव द्रव्य के चार भेद ङ- अनन्त जीवद्रव्य १४२ चौबीस दण्डक में पाँच शरीरों की बद्ध मुक्त विचारणा १४६ क- भाव प्रमाण के तीन भेद ख- प्रत्येक भेद प्रभेद का वर्णन ग- जीव-गुण प्रमाण के तीन भेद घ. ज्ञान गुण प्रमाण के चार भेद ङ- प्रत्यक्ष अनुमान उपमान और आगम प्रमाण की व्याख्या १४४ क- दर्शन गुण प्रमाण के चार भेद ख- चारित्र गुण प्रमाण के पाँच भेद १४५ क- नय प्रमाण के तीन भेद ख- प्रस्थक दृष्टान्त ग- वसति दृष्टान्त घ- प्रवेश दृष्टान्त Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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