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________________ सूत्र १३७ न- निरुक्त की व्याख्या १३१ प्रमाण के चार भेद १३२ क- द्रव्य प्रमाण के दो भेद ८४१ ख- प्रदेश निष्पन्न की व्याख्या ग- विभाग निष्पन्न के पाँच भेद घ. मान प्रमाण के दो भेद ङ - उन्मान प्रमाण की व्याख्या च- अवमान प्रमाण की व्याख्या छ- अवमान प्रमाण का प्रयोजन ज- गणित प्रमाण की व्याख्या झ- गणित प्रमाण का प्रयोजन १३३ क - क्षेत्र प्रमाण के दो भेद ख- प्रत्येक भेद की व्याख्या ग- अंगुल प्रमाण के तीन भेद घ- आत्मागुल प्रमाण की व्याख्या ङ - आत्मागुल प्रमाण का प्रयोजन च- उत्सेधांगुल के अनेक भेद छ- उत्सेधांगुल प्रमाण का प्रयोजन चोबीस दण्डक के जीवों की अवगाहना ज- प्रमाणागुल की व्याख्या - प्रमाणागुल प्रमाण का प्रयोजन - प्रमाणांगुल के तीन भेद ट- प्रत्येक भेद की व्याख्या १३४ १३५ १३६ : १३७ क- समय की व्याख्या काल प्रभाव के दो भेद प्रदेश निष्पन्न काल प्रमाण की व्याख्वा विभागनिष्पन्न काल प्रमाण की व्याख्या Jain Education International For Private & Personal Use Only अनुयोगद्वार सूची www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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