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श्रु०१ अ०४ उ० २, सूत्र २८६ १४५
स्थानांग-सूची ठ- भद्र, मंद, मृदु और संकीर्ण के लक्षण. चार गाथा २८२ क- चार विकथा, चार स्त्री कथा, चार भक्त कथा, चार देश कथा,
चार राज कथा ख- चार धर्मकथा, चार आक्षेपिनी कथा, चार विक्षेपणी कथा,
चार संवेगनी कथा, चार निर्वेदिनी कथा २८३ क- दुर्बल शरीर और दृढ़ भाव. चार प्रकार के पुरुष
ख- " " शरीर " " "
ग- ज्ञान दर्शन की उत्पत्ति " " " २८४ निग्रंथ-निग्रंथियों के ज्ञान-दर्शन की उत्पत्ति में बाधक चार कारण २८५ क- चार प्रतिपदाओं में अस्वाध्याय
ख- चार संध्याओं में "
ग- स्वाध्याय के चार काल २८६ चार प्रकार की लोकस्थिति २८७ क- विविध प्रकार का जीवन, चार प्रकार के पुरुष
ख- भव भ्रमण का अंत " " ग- क्रोध या अज्ञान
घ- आत्म दमन २८८ चार प्रकार की गर्दा २८६ क- संतुष्ट या समर्थ ख- सरलता और वक्रता-चार प्रकार के मार्ग, इसी प्रकार चार
प्रकार के पुरुष ग- क्षेम और अक्षेम-चार प्रकार के मार्ग, इसी प्रकार " घ- क्षेम और अक्षेमरूप- " " ङ- अनुकूल और प्रतिकूल स्वभाव-चार प्रकार के शंख, इसी
प्रकार चार प्रकार के पुरुष च- अनुकूल और प्रतिकूल स्वभाव छ- चार प्रकार की धूमशिखा, इसी प्रकार चार प्रकार की स्त्रियाँ
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