SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 174
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ स्थानांग-सूची १४६ श्रु०१, अ०४ उ०२ सू० २६६ ज- चार प्रकार की अग्निशिखा इसी प्रकार चार प्रकार की स्त्रियां भ- " " वातमंडलिका अ- " " के वनखंड २६० निग्रंथ-निग्रंथियों के साथ चार कारण से बात करे तो आज्ञा का उल्लंघन नहीं होता २६१ क-ग-तमस्काय के चार नाम घ. चार कल्पों पर तमस्काय का आवरण २६२ क- विविध प्रकार के स्वभाव. चार प्रकार के पुरुष ख- जय-पराजय. चार प्रकार की सेना, इसी प्रकार चार प्रकार के पुरुष वक्रताक- चार प्रकार की वक्रता, इसी प्रकार चार प्रकार की माया. माया करने वालों की गति ख- अहंकार चार प्रकार के अहंकार. इसी प्रकार चार प्रकार के मान. मान करने वालों की गति ग- लोभ चार प्रकार के लोभ, इसी प्रकार चार प्रकार के लोभ लोभी की गति २६४ क- चार प्रकार का संसार ख- " " की आयु ग- " " के भव " का आहार २६६ कर्म क- " " " बंध ख. " " " उपक्रम-आरम्भ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy