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स्थानांग-सूची
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श्रु०१, अ०४ उ०२ सू० २६६
ज- चार प्रकार की अग्निशिखा इसी प्रकार चार प्रकार की स्त्रियां भ- " " वातमंडलिका
अ- " " के वनखंड २६० निग्रंथ-निग्रंथियों के साथ चार कारण से बात करे तो आज्ञा
का उल्लंघन नहीं होता २६१ क-ग-तमस्काय के चार नाम
घ. चार कल्पों पर तमस्काय का आवरण २६२ क- विविध प्रकार के स्वभाव. चार प्रकार के पुरुष
ख- जय-पराजय. चार प्रकार की सेना, इसी प्रकार चार प्रकार
के पुरुष
वक्रताक- चार प्रकार की वक्रता, इसी प्रकार चार प्रकार की माया.
माया करने वालों की गति ख- अहंकार
चार प्रकार के अहंकार. इसी प्रकार चार प्रकार के मान.
मान करने वालों की गति ग- लोभ
चार प्रकार के लोभ, इसी प्रकार चार प्रकार के लोभ
लोभी की गति २६४ क- चार प्रकार का संसार
ख- " " की आयु ग- " " के भव
" का आहार २६६ कर्म
क- " " " बंध ख. " " " उपक्रम-आरम्भ
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