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________________ जम्बूद्वीप प्रज्ञास्ति सूत्री ६७८ वक्ष० १ सूत्र.१७ झ- एक सो आठ जिन प्रतिमाओं की ऊँचाई १४ क- दक्षिणार्ध भरतकूट का स्थान प्रमाण ख- प्रासाद की ऊंचाई और विष्कम्भ ग- मणिपीठिका का आयाम-विष्कम्भ और ऊँचाई घ- सिंहासन वर्णन ङ- दक्षिणार्ध भरत देव और उसकी स्थिति च- सामानिक देव अग्रमहीषी, परिषद्. सेना, सेनापति, आत्म रक्षक देव. छ- दक्षिणार्ध राजधानी का स्थान ज- शेषकूटों का समान वर्णन झ- तीन कूट स्वर्णमय, ६ कूट रत्नमय अ- दो कूट के देवों के नाम, शेष ६ कूटों के नामों के अनुसार देवों के नाम, देवों की स्थिति. ट- देवों की राजधानियों का स्थान क. वैताढ्य पर्वत नाम होने का हेतु ख- वैताढ्य गिरि कुमार देव और उसकी स्थिति ग- वैताढ्य नाम शास्वत १६ क- उत्तरार्ध भरत का स्थान " के तीन विभाग का आयाम की बाहा का आयाम की जीवा का आयाम. के धनुपृष्ठ की परिधि का वर्णन-यावत्-मनुष्यों की गति क- ऋषभकूट पर्वत का स्थान " की ऊँचाई और उद्वेध के मूल, मध्य और ऊपर का विष्कम्भ ५७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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