________________
श्रु०१, अ०२, उ०४ सू०६८
११७
स्थानांग-सूची
" छियालीस
ध- ५ सूत्र-वैमानिक देवता के १० इन्द्र ङ- महाशुक्र और सहश्रार कल्प के विमानों के दो वर्ण
च- ग्रेवेयक देवों की ऊंचाई सूत्र-संख्या १३
चतुर्थ उद्देशक ६५ क- समय वाचक पचास नाम ख- ग्रामादि वसति सूचक चवदह नाम
आराम आदि वाग , चार वापी आदि जलाशय , आठ प्रकीर्णक
जीव है अजीव है ग- छाया आदि दश नाम जीव हैं, अजीव हैं घ- राशि-जीव, अजीव क- दो प्रकार के बंध ख- दो कारण से पापकर्म का बंध होता है
,, ,, पापकर्मों की उदीरणा होती है घ- , , , , का वेदन होता है ङ. , , , , की निर्जरा होती है दो प्रकार से आत्मा शरीर का स्पर्श करके निकलता है
,, , को कंपित , , , , , का भेदन , " " ,, , , संकोच , , , " को आत्मप्रदेशों से पृथक करके
निकलता है ६८ दो प्रकार से आत्मा केवली कथित धर्म का श्रवण करता है
- यावत्-मन: पर्यव ज्ञान प्राप्त होता है
१६
d
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org