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________________ पद २६, २८ सूत्र २ १ ६६५ षड्विंशतितम कर्म वेद बंध पद क- अष्ट कर्म प्रकृतियों के नाम ख- चौवीस दण्डक में अष्ट कर्म प्रकृतियाँ ग- चौवीस दण्डक में ( जीव- द्वारा) एक कर्म प्रकृति के वेदनकाल में अन्य प्रकृतियों के बंधन की संभावित संख्या सप्तविंशतितम कर्म वेद पद क- अष्ट कर्म प्रकृतियों के नाम ख- चौवीस दण्डक में अष्ट कर्मप्रकृतियां ग- चौवीस दण्डक में ( एक जीव द्वारा या अनेक जीवों द्वारा ) एक कर्म प्रकृति के वेदन काल में अन्य कर्म प्रकृतियों के वेदना की संभावित संख्या अष्टाविंशतितम आहार पद प्रज्ञापना- सूची प्रथम उद्देशक ग्यारह अधिकारों के नाम १ क- चौवीस दण्डक में तीन प्रकार के आहार का कथन ख- चौवीस दण्डक के जीव आहारार्थी ग- चौवीस दण्डक के जीवों का आहारेच्छाकाल २ क- चौवीस दण्डक में द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव की अपेक्षा ङ - आहार का कथन ख - विधान मार्गणा की अपेक्षा आहार का कथन ग- चौबीस दण्डक में स्पृष्ट पुद्गलों का आहार घ- एक दिशा - यावत्-६ दिशा से आहार का ग्रहण पुराने पुद्गलों को छोड़कर नये पुद्गलों का ग्रहण च - आत्म प्रदेशावगाढ़ - समीपवर्ती आहार का ग्रहण छ - चौवीस दण्डक में आहार का परिणमन और श्वासोच्छ्वास Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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