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________________ स्थानांग-सूची १६८ . श्रु०१, अ०१०, उ०१ सू० ७५८: ७५३ दश प्रकार की नरक वेदना ७५४ क- छद्मस्थ दश पदार्थों को पूर्णरूप से नहीं जानता ख- सर्वज्ञ " " " " "जानता है ७५५ क- दश-दशा (आगमों के नाम) ख- कर्म विपाक दशा के दश अध्ययन ग- उपासक " घ. अन्तकृत ङ- अनुत्तरोपपातिक च- आचार दशा छ- प्रश्नव्याकरण दशा ज- बंध झ- द्विगृद्धि अ- दीर्घ ट- संक्षेपित ७५६ उत्सर्पिणी काल का परिमाण अवसर्पिणी " " " ७५७ क- चौवीस दण्डकों में-अनंतरोपपन्नक आदि दश प्रकार ख- पंकप्रभा के नरकावास ग- रत्नप्रभा में जघन्य स्थिति घ. पंकप्रभा में उत्कृष्ट स्थिति ङ- धूमप्रभा में जघन्य स्थिति च- असुर कुमारों आदि भवनवासियों की जघन्य स्थिति छ- बादर वनस्पति काय की उत्कृष्ट स्थिति ज- व्यन्तर देवों की जघन्य स्थिति झ- ब्रह्मलोक कल्प में उत्कृष्ट स्थिति ब- लांतक कल्प में जघन्य स्थिति ७५८ आत्महितकारी शुभकर्म बंध के दश कारण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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