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________________ स्थानांग-सूची श्रु०१, अ०१० उ०१ सू०७७२ १९६ ७५६ दश प्रकार का आशंसा (कामना) प्रयोग ७६१ ॥ " के स्थविर ७६२ " " " पत्र ७६३ केवली (सर्वज्ञ) के दश सर्वोत्कृष्ट ७६४ क- समय क्षेत्र में दश कुरुक्षेत्र ख- इनमें दश महा द्रुम ग- इनपर रहनेवाले दश महद्धिक देव और उनकी स्थिति ७६५ क- सुकाल के दश लक्षण ख- दुष्काल" सुसम सुसमा नाम के प्रथम आरा में भोगोपभोग की सामग्री देनेवाले दश कल्प वृक्ष ७६७ क- जम्बुद्वीप के भरत में-अतीत उत्सर्पिणी में दश कुलकर ख- " " " आगामी " " " " ७६८ क- जम्बुद्वीप के मेरुपर्वत से पूर्व में सीतानदी के दोनों किनारे दश वक्षस्कार पर्वत " " " "पश्चिम में " ख- धातकी खण्ड के पूर्वार्ध में "क" के समान र- " " " पश्चिमार्ध में " " " घ- पुष्करवर द्वीपार्ध के पूर्वार्ध में " " " " " " पश्चिमार्ध में" " " क- इन्द्राधिष्ठित दश कल्प ख- दश इन्द्रों के दश पारियानिक विमान ७७० दश दशमिका भिक्षु प्रतिमा का परिमाण ७७१ क- दश प्रकार के संसारी जीव ख-ग-" " " सर्व " ७७२ शतायु पुरुष की दश दशा ७६१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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