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________________ १७१ पांच स्थानों में पाप कर्मों की 33 श्रु० १, अ०६, उ० १ सूत्र ४८२ ४७५ ४७६ ४७७ 37 37 ग- अप् घ- तेजस् ख- पंच प्रादेशिक स्कन्ध अनन्त ग- पंच प्रदेशावगढ़ पुद्गल अनन्त यावत्-पांच गुण रुक्ष पुद्गल अनन्त सूत्र संख्या ३४ ङ - वायु च - वनस्पति छ- त्रस Jain Education International षष्ठ स्थान एक उद्देशक गण में रहने योग्य छह प्रकार के अणगार निर्ग्रथ-निर्ग्रथी को छह कारण से सहारा दे सकता है। मृत साधमी के साथ निग्रंथ निर्बंथियों के छह व्यवहार ४७६ ४८० ४८ १ छह प्रकार के ताराग्रह ४८२ क- छह प्रकार के संसारी जीव ख- पृथ्वीकायिकों की छह गति, " 31 ४७८ क- असर्वज्ञ ( छद्मस्थ ) धर्मास्तिकाय आदि छह को पूर्णरूप से नहीं जानता ख- सर्वज्ञ, धर्मास्तिकाय आदि छह को पूर्णरूप से जानता है अशक्य छह कार्य छह जीव- निकाय 31 17 " " 37 71 " 33 12 "" 11 29 " 33 " 32 73 11 13 36 17 11 छह आगति 11 " 3) "" " 21 " उदीरणा वेदना निर्जरा " स्थानांग सूची 17 17 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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