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________________ स्थानांग-सूची १७० श्रु०१, अ०५, उ०३ गाथा ४७४ ख- " " " आनन्तर्य-अविभाग ग- " " " अनन्त घ- " ॥ ॥ ॥ ४६३ पांच प्रकार के ज्ञान " " ज्ञानावरणीय कर्म ४६५ " " " स्वाध्याय " "प्रत्याख्यान ४६७ " " " प्रतिक्रमण ८ क- सूत्र वाचना के पांच कारण ख- " सीखने " " " ६ क- सौधर्म और ईशान कल्प के विमानों के पांच वर्ण ख- " " " " की ऊंचाई ग- ब्रह्मलोक और लांतक " देवों की ऊंचाई घ- चौवीस दण्डकों में पांच वर्ण और पांच रस के पुद्गलों का (त्रैकालिक) बंधन ४७० नदियां क- जम्बूद्वीप के मेरुपर्वत से दक्षिण में गंगा में मिलने वाली पांच नदियां " जमुना " सिन्धु " रक्ता . " रक्तवती ४७१ कुमारावस्था में दीक्षित होने वाले पांच तीर्थंकर ४७२ सभी इन्द्र स्थानों में पाँच-पाँच सभा ४७३ पांच-पाँच तारा वाले पाँच नक्षत्र ४७४ क- पांच स्थानों में पापकर्मों के पुदगलों का चयन उपचयन " " बंध Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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