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स्थानांग-सूची
१६६ श्रु०१, अ०५ उ०३ सू०४६२ ४५० क- असर्वज्ञ (छद्मस्थ) पंचास्तिकाय को पूर्णरूप से नहीं जानता ख सर्वज्ञ
" जानता है ४५१ क- अधोलोक में पांच नरकावास
ख- उद्धलोक " महा-विमान ४५२ पांच प्रकार के पुरुष ४५३ भिक्षाचर
पांच प्रकार के मत्स्य. इसी प्रकार पांच प्रकार के भिक्षु ४५४ " " " याचक ४५५
" " " प्रशस्त अचेलक ४५६ " उत्कट (उत्तोत्तर बढ़ने वाला)
। ' समिति ४५८ क- पांच प्रकार के संसारी जीव
ख- एकेन्द्रिय की पांच गति, पांच आगति ग- द्वीन्द्रिय " " " घ- त्रीन्द्रिय " " " " ङ- चतुरिन्द्रिय" " " , च- पंचेन्द्रिय " " " , छ- पांच प्रकार के सर्व जीव
ज- " " " " " ४५६ धान्यों की उत्कृष्ट स्थिति ४६० क- पांच प्रकार के संवत्सर
ख. " " " युग संवत्सर ग- " " " प्रमाण".
घ. " " " लक्षण " ४६१ जीव निकलने के पांच मार्ग. तदनुसार गति ४६२ क- पांच प्रकार के छेदन-विभाग
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