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________________ उत्तराध्ययन-सूची ७६५ अ० १६ गाथा ७ as w o wa १३ ख- शीत-उष्ण और दंस मशक परीषह सहना पूजा-प्रतीष्ठा न चाहना क- मोह जीतना ख- स्त्री से विरक्त रहना ग- हँसी मजाक न करना आहार के लिये विद्या प्रयोग न करना , मन्त्रादि का प्रयोग न करना क्षत्रिय आदि की प्रशंसा न करना लौकिक कामनाओं के लिये किसी का परिचय न करना शयनासनादि के न देने वाले पर द्वेष न करना ग्लान-बाल और वृद्ध श्रमण की शुद्ध आहारादि से परिचर्या करना शीत और नीरस आहार लेना मधुर-संगीत और भयावह शब्दों में राग-द्वेष न करना विविध वादो-विचारों-से विचलित न होना अशिल्प जीवी आदि प्रशस्त गुणों का धारक होना सोलह वाँ ब्रह्मचर्य समाधि अध्ययन १ क- भ० महावीर द्वारा दस ब्रह्मचर्य समाधिस्थानों का प्ररुपण ख- स्त्री-पशु-पण्डक रहित शयनासन का सेवन करना, सेवन न करने से होने वाली हानियां स्त्री कथा न करना, करने से होने वाली हानियाँ स्त्री के साथ एक आसन पर न बैठना स्त्री के अंगोंपांगों की ओर दृष्टि न डालना स्त्री के हास्य विलासादि का भित्ति के पीछे से भी न सुनना भुक्त भोगों का स्मरण न करना उत्तेजक पदार्थों का आहार न करना rm x xur 9 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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