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________________ अ० १५ गाथा ४ ७६४ उतराध्ययन-सूची २६-३० भृगु पुरोहित का जसा भार्या को समझाना वृद्धावस्था में दीक्षित होने के लिये जसा भार्या का निवेदन ३२ दीक्षा का उद्देश्य-मुक्ति है जसा द्वारा भिक्षुचर्या की कठिनाईयों का वर्णन ३४-३५ क- भगु पुरोहित का दृढ़ निश्चय ख- भोगों को सर्प कंचूक और मत्स्य जाल की उपमा ३६ जसा का भी दीक्षित होने का निश्चय ३७-४० कमलावती रानी का राजा को उपदेश ४१-४८ क- आत्मा को पक्षी की और भोगों को पिंजरे की उपमा ख. अरण्य में दग्ध पक्षियों को देखकर अन्य पक्षियों के प्रमुदित होने के रूपक से राग-द्वेष का स्वरूप समझना ग- भोगों को आमिष की उपमा । घ- स्वयं को उरग की और मृत्यु को गरुड़ की उपमा ङ- बन्धन मुक्त गजराज के समान स्वस्थान-शिवपद को प्राप्त करने का प्रस्ताव ४९-५४ राजा आदि छहों का दीक्षित होना पन्द्रह वाँ सभिक्षु अध्ययन भिक्षु के लक्षण क- निदान न करना ख- प्रशंसा न चाहना ग- काम-भोगों की चाहना न करना घ- अज्ञात कुल से आहारादि की एषणा करना क- विरक्त होकर विचरना ख- आसक्ति न करना आक्रोश और वध परीषह सहन करना क- अत्यल्य उपकरण रखना - < Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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