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________________ भगवती-सूची ३३४ श० १० उ०१-३ प्र०१८ दशम सतक प्रथम दिशा उद्देशक १-२ पूर्वादि दिशायें जीव-अजीव रूप है ३ दश दिशाएँ ४ दश दिशाओं के नाम ५ क- दिशायें जीव-अजीव के देश-प्रदेशरूप हैं ख- एकेन्द्रिय-यावत्-अनिन्द्रिय के देश-प्रदेशरूप हैं ग- रूपी अजीव चार प्रकार का घ- अरूपी अजीव सात प्रकार का ६ आग्नेयी दिशा जीवरूप नहीं है ७-८ दिशा-विदिशाओं के जीव-अजीवरूप ६ पांच प्रकार के शरीर द्वितीय संवृत अणगार उद्देशक १० कषाय भाव में संवृत अनगार को लगनेवाली क्रियाएँ ११ क- अकषाय भाव में संवृत अणगार को लगनेवाली क्रियाएँ ख- इर्यापथिकी अथवा सांपरायिकी क्रियाओं के हेतु तीन प्रकार की योनियाँ १३ तीन प्रकार की वेदनायें १४ भिक्षु पडिमा १५ क- अकृत्य स्थान की आलोचना से अाराधना ख- अकृत्य स्थान की आलोचना न करने से विराधना तृतीय प्रात्म-ऋद्धि उद्देशक क- राजगृह ख- एक देव में चार-पांच देवावासों के उल्लंघन का सामर्थ्य १७ अल्प ऋद्धिक देव की शक्ति १८ महद्धिक देव की शक्ति १२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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