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________________ श०६ उ०३४ प्र०११२ भगवती-सूची ४४ ४५ ३६ क- जमाली की विराधकता ख-जमाली की किल्विषिक देवरूप में उत्पत्ति और स्थिति ३७ भ० महावीर का जमाली के संबंध में गौतम को कथन ३८ किल्विषिक देवों की स्थिति ३६-४१ किल्विषिक देवों का निवासस्थान ४२ किल्विषिक देव होने के हेतु किल्विषिक देवों की भव परम्परा जमाली की साधना के संबंध में भ० महावीर से गौतम का प्रश्न जमाली की लातंक कल्प में उत्पत्ति जमाली का कुछ भवों के पश्चात् निर्वाण चोतीसवां पुरुष घातक उद्देशयक १०४ क- राजगृह __ख- पुरुष को मारनेवाला पुरुष से भिन्न की भी हत्या करता है ग- पुरुष से भिन्न की हत्या का हेतु १०५ क- अश्व को मारनेवाला अश्व से भिन्न को भी मारता है १०६ क- त्रस को मारनेवाला त्रस से भिन्न को भी मारता है ख- त्रस से भिन्न को मारने का हेतु १०७ क- ऋषि को मारनेवाला ऋषि से भिन्न को भी मारता है ख- ऋषि से भिन्न को मारने का हेतु बैरभाव पुरुष को मारनेवाला पुरुष और पुरुष से भिन्न के साथ भी वैर बांधता है (इसके अनेक विकल्प) १०६ ऋषि के सम्बंध में प्रश्नोत्तरांक १०८ की पुनरावृत्ति श्वासोच्छ्वास ११० पृथ्वीकाय आदि के श्वासोच्छ्वास का विचार १११ पृथ्वीकाय आदि के श्वासोच्छ्वास के समय लगनेवाली क्रियाएँ ११२ वायुकाय से होनेवाली क्रियाएँ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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