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________________ श०१० उ०४ प्र०३५ १६ - २० देव विमोहित करके दूसरे देव के मध्य में होकर जाता है २१-२२ महद्धिक देव का दूसरे देव के मध्य में होकर गमन २३ २४ अल्प ऋद्धि वाले देव का देवी के मध्य में होकर गमन यावत् महद्धिक देव का देवी के मध्य में होकर गमन २५-२६ अल्प ऋद्धिवाली देवी का देवी के मध्य में होकर गमन २७-२८ महधिक देवी का देवी के मध्य में होकर गमन २६ ३० ३३५ उदर वायु घोड़े के पेट में कर्कट वायु बारह प्रकार की भाषा चतुर्थ श्यामहस्ती श्रणगार उद्देशक ३१ क- वाणिज्यग्राम, दुतिपलाश चैत्य, भ० महावीर और इन्द्रभुति ख- श्याम हस्ती अणगार और गौतम का संवाद ३२ क- असुर कुमार के त्रास्त्रिशक देव ख- जम्बुद्वीप, भरत, काकंदी, तेतीस श्रमणोपासक ग- सभी श्रमणोपासक विराधक हुए और वे त्रास्त्रिशक देव हुए ३३ क - संदिग्ध गौतम का भ० महावीर के समीप समाधान के लिये उप स्थित होना ख- अशुरेन्द्र के त्रायस्त्रिशक देवों का पद शास्वत है ३४ क- बलेन्द्र के त्रास्त्रिशक देव भगवती-सूची Jain Education International ख- जम्बूद्वीप, भरत, बेभेल संनिवेश, तेतीस श्रमणोपासक विराधक हुए और वे सभी त्रास्त्रिशक देव हुए, ग- धरणेन्द्र के त्रायस्त्रिशक देव शेष भवनवासी एवं व्यंतर देवों के वायस्त्रिशक देव ३५ क शकेन्द्र के वायस्त्रिशक देव ख- जम्बूद्रीप. भरत. पलाशक संनिवेश. तेतीस श्रमणोपासक आराधक अवस्था में मरकर त्रास्त्रिशक देव हुए For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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