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स्थानांग-सूची
१४१ श्रु०१, अ०४, उ०१ सूत्र २५६.
च-
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ग- चौबीस दण्डकों में (तिन काल में) आठ कर्म प्रकृतियों के
बंध के चार कारण घ- " " "
उदीरणा , ङ- " "." . " वेदना
निर्जरा , २५१ क- चार पडिमा। २५२ क- चार अस्तिकाय
, अरूपि
वय एवं श्रुत से पक्व या अपक्व २५३ चार प्रकार के फल, इसी प्रकार चार प्रकार के पुरुष २५४ क- ,, , का सत्य - ख- , , की मृषा
, का प्रणिधान घ. , , का सुप्रणिधान ङ. , , , दुष्प्रणिधान
१६ पंचेद्रिय दंडकों में २५५ क- सद् व्यवहार (चार प्रकार के पुरुष)
ख- दोष दर्शन , " " ग- , कथन " , " घ- ,, उपशमन , , , आभ्यन्तर तप विनय-चार प्रकार के पूरुष
१ अभ्युत्थान, २ वंदना, ३ सत्कार, ४ सम्मान, ५ पूजन, ६ स्वाध्याय, ७ वाचना देना, ८ पूछना, ६ बार-बार
१० पूछना, ११ व्याख्या करना, १२ सूत्र, अर्थ, तदुभय, २५६ क- भवनेन्द्रों के लोकपाल
___ ख- वैमानिकेन्द्रों , "
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