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श्रु०१, अ०४, उ०१ सू० २५० १४०
स्थानांग-सूची यावत्-पराक्रम सूत्र २३६ के समान
फलदान २४२ फलदान-चार प्रकार के कोरक (मंजरी) इसी प्रकार
चार प्रकार के पुरुष २४३ तप-चार प्रकार के धुन, इसी प्रकार चार प्रकार के भिक्षु २४४ चार प्रकार का तृण वनस्पतिकाय २४५ चार कारणों से नैरिकों का मनुष्य लोक में न आसकना,
निग्रंथियों को कल्पनीय चार चद्दरें और उनका परिमाण चार ध्यान, प्रत्येक ध्यान के चार चार प्रकार, ध्यान के
लक्षण, आलंबन और अनुप्रेक्षा २४८ चार प्रकार की देव-स्थिति
ख- , , का संवास-मैथुन २४६ क- चौवीस दंडकों में चार कषाय ख- चौवीस दंडको में कषायों के चार आधार स्थान
,, की उत्पत्ति के चार कारण घ-ङ- चार प्रकार का क्रोध च-छ-, , मान ज-झ-,, , माया
ज-ट- ,, ,, लोभ २५० क- (चौवीस दंडकों में) अतीत काल में आठ कर्म प्रकृतियों के
चयन के चार करण वर्तमान
भविष्य ख- चौवीस दंडकों में तीन काल में आठ कर्म प्रकृतियों के उप
चयन के चार कारण
ग-
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