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उत्तराध्ययन-सूची
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अ० ३३ गाथा १६
४८-६० घ्राणेन्द्रिय के विषयों से विरक्ति ६१-७३ जिह्वा इन्द्रिय के विषयों से विरक्ति .. ७४-८६ स्पर्शेन्द्रिय के विषयों से विरक्ति ८७-६६ भाव विरक्ति १०० उपसंहार—दुःख के हेतु-इन्द्रियों के विषय दुःख से मुक्त वीतराग
१०१ दुःख का मूल विषय नहीं अपितु राग-द्वेष है १०२-१०३मानसिक विकार १०४-१०५सावधान साधक के कर्तव्य
१०६ विरक्त पर अच्छे बुरे पदार्थों का प्रभाव नहीं होता १०७ सकल्प विजय से तृष्णा विजय १०८ वीतराग के सर्वथा कर्मक्षय १०६ जीवन्मुक्त की मुक्ति ११० मुक्त आत्मा का शास्वत सुख १११ दुःख मुक्ति के उपायों का ज्ञाता
तेतीसवाँ कर्म प्रकृति अध्ययन १ अष्ट कर्मों के कथन का संकल्प २-३ अष्टकर्मों के नाम
४ (१) ज्ञानारवरणीय कर्म की उत्तर प्रकृतियां ५-६ (२) दर्शनावरणीय कर्म की उत्तर प्रकृतियाँ
७ (३) वेदनीय कर्म की उत्तर प्रकृतियाँ ८-११ (४) मोहनीय कर्म की उत्तर प्रकृतियाँ १२ (५) आयु कर्म की उत्तर प्रकृतियाँ १३ (६) नामकर्म की उत्तर प्रकृतियाँ १४ (७) गोत्रकर्म की उत्तर प्रकृतियाँ. १५ (८) अन्तराय कर्म की उत्तर प्रकृतियाँ १६ अष्ट कर्मों के प्रदेश-क्षेत्र-काल और भाव के कथन का संकल्प
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