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________________ भगवती-सूची ४१४ श०३१ उ०५ प्र०२ ३-६ लेश्या-यावत्-उपयोगवाले जीव चार समवसरण वाले हैं ७-६ चौबीस दण्डक के जीव चार समवसरण वाले हैं १०-२६ चार समवसरणवालों के आयु का बन्ध ३०-३४ चार समवसरण वाले भव्य या अभव्य शेष दश उद्देशक प्रथम उद्देशक के समान इकत्तीसवाँ शतक प्रथम उद्देशक १ क- राजगृह-भ० महावीर और गौतम ख- चार प्रकार के क्षुद्र युग्म ग- क्षुद्र युग्म कहने का हेतु २-६ चौबीस दण्डक में चार प्रकार के युग्म जीवों का उपपात द्वितीय उद्देशक धूमप्रभा- यावत् तमस्तम प्रभा १-५ नरक में चार प्रकार के क्षुद्र युग्म कृष्ण लेश्य वाले जीवों का उपपात तृतीय उद्देशक बालुका प्रभा-यावत्-धूमप्रभा नरक में चार प्रकार के क्षुद्र युग्म लेश्या वाले जीवों का उपपात चतुर्थ उद्देशक रत्नप्रभा-यावत-बालूका प्रभा में चार प्रकार के क्षुद्र युग्म कापोत लेश्यावाले जीवों का उपपात पंचम उद्देशक १-२ चार प्रकार के क्षुद्र युग्म भव सिद्धिक जीवों का नैरयिकों में १.२ उपपात Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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