________________
श० ३० उ० १ प्र०२
४१३
भगवती-सूची
सत्तावीसवाँ शतक इग्यारह उद्देशक जीव का पाप कर्म करना तथा आठ कर्मों का बन्ध करना छव्वीसवें शतक के इग्यारह उद्देशकों के समान
अठावीसवाँ शतक इग्यारह उद्देशक जीव ने किस गति में पापकर्मों का उपार्जन और किस गति में पपाकर्मो का आचरण किया (आठ विकल्प) लेश्या-यावत-उपयोग वाले जीवों द्वारा पापकर्मों का उपार्जन तथा पापकर्मों का आचरण चौबीस दण्डक के जीवों द्वारा पापकर्मों का उपार्जन, आचरण तथा आठकर्मों का उपार्जन व आचरण शेष दश उद्देशक छब्बीसवें शतक के उद्देशकों के समान
उनत्तीसवाँ शतक इग्यारह उद्देशक पापकर्मों के वेदन का प्रारम्भ और अन्त (चार विकल्प) प्रारम्भ और अन्त कहने का हेतु लेश्या-यावत्-उपयोगवाले जीवों के वेदना का प्रारम्भ और अन्त चौबीस दण्डक के जीवों में वेदना का प्रारम्भ और अन्त शेष दश उद्देशक-छब्बीसवें शतक के उद्देशकों के समान
तीसवाँ शतक इग्यारह उद्देशक प्रथम उद्देशक चार प्रकार के समवसरण-मत समस्त जीव चार समवसरण वाले हैं
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org