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________________ ७७८ चूलिका २ गाथा १६ ७७८ दशबैकालिक-सूची २ अनुस्रोत-गमन को बहुमताभिमत दिखाकर मुमुक्ष के लिये प्रति स्रोत-गमन का उपदेश ३ अनुस्रोत और प्रतिस्रोत के अधिकारी, संसार और मुक्ति की परिभाषा ४ साधु के लिये चर्या, 'गुण और नियमों की आवश्यकता का निरूपण ५ अनिकेतवास आदि चर्या का निरूपण ६ आकीर्ण और अपमान संखडि-वर्जन आदि भिक्षा-विशुद्धि के अंगों का निरूपण व उपदेश ७ श्रमण के लिये आहार-विशुद्धि और कायोत्सर्ग आदि का उपदेश ८ स्थान आदि के प्रतिबंध व गाँव आदि में ममत्व न करने का उपदेश ६ गृहस्थ की वैयावृत्य आदि करने का निषेध और असंक्लिष्ट मुनिगण के साथ रहने का विधान. १० विशिष्ट संहनन-युक्त और श्रुत-सम्पन्न मुनि के लिए एकाकी विहार का विधान. ११ चातुर्मास और मासकल्प के बाद पुन: चातुर्मास और मासकल्प करने का व्यवधान-काल, सूत्र और उसके अर्थ के अनुसार चर्या करने का विधान १२-१३ आत्म-निरीक्षण का समय, चिन्तन-सूत्र और परिमाण १४ दुष्प्रवृत्ति होते ही सम्हल जाने का उपदेश १५ प्रतिबुद्ध जीवी, जागरूक भाव से जीनेवाले की परिभाषा १६ आत्म-रक्षा का उपदेश और अरक्षित तथा सुरक्षित आत्मा की गति का निरूपण. श्री जैन श्वे० तेरापन्थी महासभा, कलकत्ता द्वारा प्रकाशित दशवकालिक द्वितीय भाग से यह सूची साभार उद्धृत की हैः Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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