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________________ ६२ श०७ उ०४,५६ प्र०७२ भगवती-सूची ख- इसी प्रकार चौबीस दण्उक में 'क' के समान ५६ वेदना और निर्जरा का विभिन्न समय चौवीस दण्डक में वेदना और निर्जरा का विभिन्न समय जीव को शास्वत या अशास्वत मानना सापेक्ष है चौवीस दण्डक में जीव को शास्वत या अशास्वत मानना सापेक्ष है चतुर्थ जीव उद्देशक राजगृह-उत्थानिका ६४ छ प्रकार के मंसार स्थित जीव ६५ पृथवी के छ भेद, छ भेदों की स्थिति, भवस्थिति,काय स्थिति, निर्लेपकाल, अनगार सम्बन्धि विचार, सम्यक्त्व क्रिया और मिथ्यात्व किया पंचम पक्षी उद्देशक ६६ तीन प्रकार का योनि संग्रह षष्ठ प्रायु उद्देशक ६७ क- राजगृह ख- चौवीस दण्डक के जोव इसी भव में आयु बंध करते हैं ६८ चौवीस दण्डक के जीव उत्पन्न होने के पश्चात् आयु का वेदन करते हैं ६६-७० चौवीस दण्डक के जीवों की अल्प या महा वेदना ७१ क- जीव के अनाभोग में आयु-बंध ख- चौवीस दण्डक में अनाभोग (अनुपयोग) से आयु का बंध वेदनीय कर्म ७२ क- प्राणातिपात-यावत्-मिथ्यादर्शनशल्य से जीव के कर्कश वेद नीय कर्म का बंध ख- इसी प्रकार चौवीस दण्डक में 'क' के समान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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