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भगवती-सूची
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श०७ उ.०३ प्र०.५८ ३१ जीव प्रत्याख्यानी और अप्रत्याख्यानी है ३२ चौवीस दण्डक में प्रत्याख्यानी और अप्रत्याख्यानी की विचारणा
मूलगुण प्रत्याख्यानी आदि का अल्प-बहुत्व ३४-४३ चौवीस दंडक में मूलगुण प्रत्याख्यानी का अल्प-बहुत्व
संयत-असंयत आदि ४४ क- जीव संयत-असंयत और संयतासंयत भी है
ख- चौवीस दण्डक में संयत आदि हैं ग- संयत आदि की अल्प-बहुत्व
चौवीस दण्डक में प्रत्याख्यानी आदि ४६ प्रत्याख्यानी आदि का अल्प-बहत्व
जीव शास्वत या अशास्वत जीव को शास्वत या अशास्वत मानना सापेक्ष है चौवीस दण्डक में जीव का शास्वत या अशास्वत मानना सापेक्ष है तृतीय स्थावर उद्देशक वनस्पतिकाय अल्पाहारी और महा आहारी ग्रीष्म ऋतु में वनस्पति के पुष्पित फलित होने का कारण मूल कंद-यावत्-बीज भिन्न-भिन्न जीवों से व्याप्त है
वनस्पतिकाय का आहार और परिणमनां ५३ आलू आदि अनन्त जीववाली वनस्पतियाँ हैं
लेश्या और कर्म ५४ क- अल्प-कर्म और महाकर्म का कारण __ ख- चौवीस दण्डक में लेश्या तथा अल्प-कर्म का विचार ५५ वेदना और निर्जरा की भिन्नता ५६ चौवीस दण्डक में वेदना और निर्जरा की भिन्नता ५७-५८ क- वेदना और निर्जरा की भिन्नता तीन काल की अपेक्षा से
_ विचार
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