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________________ श०८ उ०२ प्र० १५६ ३२१ भगवती-सूची द्वितीय आशिविष उद्देशक ७१ दो प्रकार के आशिविष । ७२-७४ जाति आशिविष चार प्रकार के ७५-८५ चौवीस दण्डक में कर्म आशिविष का विचार छद्मस्थ और सर्वज्ञ ८६ क- छद्मस्थ दश वस्तुओं को नहीं जानता ___ख- सर्वज्ञ दश वस्तुओं को जानता है ज्ञान का विस्तृत वर्णन पांच प्रकार का ज्ञान मतिज्ञान चार प्रकार का तीन प्रकार का अज्ञान मति अज्ञान चार प्रकार का अवग्रह दो प्रकार का श्रुत अज्ञान ९३ विभंग ज्ञान (ज्ञान का संस्थान) ६४-६६ चौवीस दण्डक में ज्ञानी-अज्ञानी १०० सिद्ध-केवलज्ञानी १०१-१०४ पांच गति में ज्ञानी-अज्ञानी १०५-१०७ इन्द्रिय वर्गणा में ज्ञानी-अज्ञानी १०८-१०६ काय वर्गणा में ज्ञानी-अज्ञानी ११०-११२ सूक्ष्म आदि में ज्ञानी-अज्ञानी ११३-१२० चौवीस दण्डक के पर्याप्त-अपर्याप्त में ज्ञानी-अज्ञानी १२१-१२४ चार गति के भवस्थ जीवों में ज्ञानी-अज्ञानी १२५-१२७ भवसिद्धिक आदि में ज्ञानी-अज्ञानी १२८ संज्ञी आदि में ज्ञानी-अज्ञानी १२६-१३६ दश प्रकार की लब्धियों के भेद १३७-१५६ दश लब्धि सहित तथा दश लब्धि रहित में ज्ञानी-अज्ञानी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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