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________________ २३० श्रु०१, अ०४, उ०१ सूत्र २३६ १३८ . स्थानांग-सूची २२६ भ० महावीर के पश्चात् होने वाले तीन युग पुरुष भ० महावीर के चौदह पूर्वी मुनि २३१ तीन तीर्थंकर चक्रवर्ती थे । ग्रैवेयक देवों के तीन विमान प्रस्तट २३३ जीवों द्वारा तीन प्रकार की पाप कर्म प्रकृतियों के पुद्गलों का त्रैकालिक चयन-यावत्-निर्जरा सूत्र ११७ के समान २३४ क- तीन प्रदेशी स्कंध ख- , प्रदेशावगाढ पुद्गल ग- ,, समय की स्थितिवाले पुद्गल घ- , गुण काले पुद्गल-यावत्-तीन गुण रुखे पुद्गल सूत्र संख्या ४४ चतुर्थ-स्थान प्रथम उद्देशक २३५ चार अंतक्रिया सिद्ध गति प्राप्त होने के उपाय उन्नत प्रणत २३६ क- चार प्रकार के वृक्ष, इसी प्रकार चार प्रकार के पुरुष उन्नत परिणत प्रणत परिणत ग- चार प्रकार के वृक्ष, इसी प्रकार चार प्रकार के पुरुष उन्नत मन प्रणतमन घ- चार प्रकार के पुरुष उन्नत प्रणत ङ.- चार प्रकार के संकल्प च- , की प्रज्ञा छ- , , की दृणि ज- का शीलाचार झ- " " का व्यवहार का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001931
Book TitleJainagama Nirdeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1966
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_index
File Size9 MB
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