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सूत्रकृतांग-सूची
१६ दान के सम्बन्ध में अन्यतीथिक का आक्षेप वचन
१७
अन्य तीर्थियों की स्वपक्ष सिद्धि के लिये धृष्टता परास्त अन्यतीर्थिकों का गालीदान
१८
१६
परतीथिकों के साथ विवेक पूर्वक वाद करने का विधान ग्लान सेवा
२०
२१
उपसर्ग सहन करने का उपदेश
चतुर्थ उद्देशक- यथावस्थित अर्थ प्ररूपण
गाथांक
१
७२ श्रु०१, अ०३, उ०४ गाथा १८
सिद्धि के सम्बन्ध में विविध मान्यताएं१ जल से सिद्धि
२ नमी की आहार न खाने से और रामगुप्त की आहार खाने से सिद्धि हुई
३ बाहुक और नारायण ऋषि ने पानी पीकर सिद्धि प्राप्त की ३-४ आसिल ऋषि, देविल ऋषि, द्वीपायन ऋषि और पाराशर ऋषि ने पानी पीने से और वनस्पति के खाने से सिद्धि कही है। ५ भारवाही गर्दभ के समान संयमभार से भिक्षु का दुःखी होना पृष्ठसप पंगु के समान शिथिल श्रमण को शिवपद प्राप्त नहीं होता ६-७ मिथ्यामार्ग और आर्यमार्ग का अन्तर, आर्यमार्ग ग्रहण किये
बिना लोह बनिये की तरह दुःखी होना
८ पंचाश्रव सेवी असंयमी
६-१३
स्त्रियों के सम्बन्ध में पार्श्वस्थों के अभिप्राय १४ सुखेषी का पश्चात्ताप
१५ धीर पुरुष का जीवन
१६ स्त्री वैतरणी नदी के समान दुस्तर है १७ स्त्री त्यागी को समाधि की प्राप्ति १८ उपसर्ग सहना समुद्र के समान दुस्तर है
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