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सूत्रकृतांग-सूची
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५-६
७
5-£
१०-११
१२-१३
१४
१५
१६
१७-१८
१६
श्रु०१, अ०६, ३०१ गाथा २६
धन का भोग स्वजन और कर्मफल का भोग संग्रहकर्ता
भोगता है
२०-२१
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२५-२७
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पाप का फल भोगते समय कोई रक्षक नहीं बनता, रत्नत्रय की आराधना, ममत्व और अहंकार का त्याग, जिनभाषित धर्म का अनुष्ठान
बाह्य और आभ्यंतर परिग्रह का त्याग, संयम का पालन विविध प्रकार के जीव, जीवहिंसा और परिग्रह का निषेध मृषावाद, अदत्तादान, मैथुन, परिग्रह, कषाय तथा शस्त्र कर्म - बंध के हेतु हैं अतः इनका त्याग करना
अनाचारों का त्याग
दोषयुक्त आहार का त्याग
अनाचारों का त्याग
सांसारिक वार्ता, पापकार्य की प्रशंसा, निमित्त कथन और शय्यातर के आहार का निषेध
अनाचारों का त्याग
हरे घास आदि पर मलोत्सर्ग का निषेध तथा बीजादि अप्रासुक ( सजीव ) को निकाल कर प्रासुक (निर्जीव ) जल
से गुदा
प्रक्षालन का निषेध
अनाचारों का त्याग
यश के लिये प्रयत्न न करना
स्वधर्मी को सदोष अन्न-जल देने का निषेध
निग्रंथ महावीर का उपदेश
भाषा विवेक
कुशील की संगति न करना
अकारण गृहस्थ के घर में बैठने का, बच्चों के खेल खेलने का और अधिक हंसने का निषेध
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